प्राणवायु को बाहर निकालने तथा उसे बाहर रोक देने की क्रिया से चित्त स्थिर होता है । ऐसा महर्षि पतंजलि अपने योग दर्शन में बताते हैं ।
इसे गहराई से समझने की कोशिश करनी चाहिए । ऋषि ने साँसों को बाहर रोकने की बात की । रोकने से चित्त की स्थिरता का क्या अर्थ हो सकता है , इस पर बात करेंगे । सामान्यतः साँसों को जबरन बाहर निकालकर रोकते हैं तब प्राणवायु में जो बाधाएँ रहती हैं वह समाप्त हो जाती हैं । यह कुछ वैसा ही है जैसे कोई व्यक्ति क़ब्ज़ को पेट में बहुत दबाव व ज़ोर देकर पेट को साफ़ करने का प्रयत्न करता हैं । ध्यान दें डीटॉक्सिफ़िकेशन के लिए कुछ दिनों व महीनो के लिए बहुत ज़ोर जबरजस्ती तो चल सकती है किंतु यह शरीर का मूल स्वभाव नहीं है ।
मेरे अपने अनुभव में डीटॉक्सिफ़िकेशन के लिए बहुत ज़ोर जबरजस्ती ठीक नहीं, बहुत ज़ोर व दबाव से किया गया डीटॉक्सिफ़िकेशन मस्तिष्क को बहुत आराम व शांति नहीं दे सकता है । मन में स्वाभाविक संतुष्टि की अनुभूति नहीं होती है । क्योंकि मन को डीटॉक्सिफ़िकेशन के लिए बहुत परिश्रम करना पड़ा है ।
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