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The Truth Of Kapalbhati

कपालभाती प्राणायाम की उत्पत्ति और उसके प्रभाव का सूक्ष्म रहस्य 

सामान्यतः शरीर की मांसपेशियों के अभ्यास पर ही ज़ोर दिया जाता है । वह भी हाथों और पैर के अभ्यास तक ही यह मनुष्य सीमित है । किंतु आसन विज्ञान में अभ्यास को अत्यधिक सूक्ष्मता की ओर ले ज़ाया जाता है , इसमें बहुत गहराई से रीढ़ पर ध्यान केंद्रित दिया गया । अंतरतम के अनुभव में मैंने यह पाया कि रीढ़ के जोड़ों में खिंचाव पैदा करके नसों और नाड़ियों तक अपने मन व चेतना को पहुँचाने का प्रयास किया जाता है । इसके द्वारा मन, शरीर के सूक्षतम जोड़ों वाले स्थानों तक जाने में कामयाब हो पाता है किंतु एक सीमा के बाद अभ्यास करने वाले का विकास रुक सा जाता है ।

उसका मन सूक्षतम जोड़ों के अतिरिक्त ज्ञानेंद्रिय तक नहीं पहुँच पाता है । मन ज्ञानेंद्रियों तक पहुँचे इसके लिए प्राणायाम के अभ्यास पर ज़ोर दिया गया । यहाँ पर ज्ञानेंद्रियों तक जाने का अर्थ है उन पाँच इंद्रियों (आँख कान नाक जीभ और त्वचा) तक जिसमें प्राणायाम के अभ्यास से पहुँचा जाता है । 

 

प्राणायाम की प्रक्रिया में कपालभाती जो एक शठकर्म की प्रारम्भिक क्रिया है, पर ज़ोर दिया गया । यदि इस प्राणायाम की गहराई को समझने का प्रयत्न किया जाय तो इसे मैं प्राणायाम की संज्ञा नहीं देना चाहूँगा । इसके अभ्यास में गले से लेकर नासिका के अग्र भाग तक आवाज़ के माध्यम से तनाव पैदा किया जाता है । इसमें स्वाँस की सहायता से साँसों को बाहर निकालते हुए आवाज़ पैदा करनी होती है । ध्यान दें साँसों को झटके से आवाज़ के साथ ।


अधिक जानकारी के लिए योगी अनूप जी के ब्लॉग को भी पढ़ सकते हैं -कपाल भाती का सूक्ष्म रहस्य

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