परिस्थितियों से मन को अलग कर दें | How to withdraw Senses From Situation |
How To Withdrawal Senses from Situation
व्यक्ति के दिनचर्या में में ऐसी बहुत समस्याएँ आती हैं जिनका कोई बहुत कारण नहीं होता है, थोड़ी बहुत नासमझी के कारण ही वे समस्याएँ आ जाती हैं । उनके कारण पर न जाकर वहाँ पर साधक को परिस्थितियों से स्वयं के मन को अलग कर लेना होता है ।
जब परिस्थितियाँ अधिक प्रभावशाली हो जाती हैं तब समस्याओं के कारण पर जाना मूर्खता माना जाता है , उस समय परिस्थितियों को छोड़ कर बाहर निकल सको तो निकल जाना चाहिए या उससे यदि छिड़ने के लयक परिस्थितियाँ नहीं है तब उसी परिस्थिति में रहकर स्वयं के मन को शून्य कर देना चाहिए ।
इसे मैं बहुत बड़ी साधना मानता हूँ । क्योंकि समस्त इंद्रियाँ उस समस्या के सामने है और अंदर से आप के अंदर कोई विचार नहीं चल रहा । एक प्रयोग करके देखें ।
कभी कभी बच्चे अपने माता पिता की डाँट को बस सुनते रहते हैं , किंतु अंदर से अप्रभावित रहते हैं । इस प्रकार का प्रयोग एक पति अपनी पत्नी के साथ , पत्नी अपने पति के साथ अक्सर करते दिखायी देते हैं किंतु ये प्रयोग किसी सामान्य परिस्थिति में ही होती है । आप सभी को इसे गम्भीर साथियों में प्रयोग करके देखना चाहिए । अपने ऑफ़िस टाइम में इसका प्रयोग करना चाहिए ।
ध्यान दें व्यक्ति के पास मन शरीर और इंद्रियों के अभ्यास के लिए समय ही समय है , यह तक कि जितनी समस्याएँ है उसी समय वह प्रयोग कर सकता है ।
मई उस साधना को सबसे बेहतर मानता हूँ जो समस्याओं के रहते ही उसमें समाधान की बात की जाय , समस्याओं के घट जाने के बाद उसका इलाज बहुत नहीं माना जाता जय ।
समस्याओं के सामने क्या क्या कर सकते हैं ,
1- इंद्रियों को बहुत हिलने ना दें, उसमें गम्भीरता बनाएँ रखें ।
2- मन को शून्यता की ओर ले जाने की कोशिश करते रहें ।
3- यदि हृदय की गति बहुत अधिक बढ़े तो स्वाँस प्रास्वाँस को अनुभव करने की कोशिश करते रहें ।
4- कोशिश करें कि परिस्थिति का सामना करते रहें , आपकी हृदय गति थोड़ी देर में बढ़ने के स्थिर हो जाएगी ।
5- कितनी भी समस्याएँ आए अपने दैनिक कार्य को न छोड़े । योग प्राणायाम ध्यान इत्यादि करें । परिवार में स्वयं को सामान्य बनाए रहने की कोशिश करते रहें यद्यपि नहीं होगा, आपके चेरे और इंद्रियों पर वह परेशानी दिखेगी किंतु कोशिश में लनिरंतर मन को लगाए रखें ।
6 - मन को नियमित दिनचर्या देते रहने से शक्ति की कमी नहीं महसूस होती है और परिणामस्वरूप वह पुनः शक्तिशाली हो उठता है ।
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