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ग़लत प्राणायाम के दुष्प्रभाव

क्या गलत तरीके से किए गए प्राणायाम से मुंह का स्वाद और गले की स्थिति प्रभावित होती है? 

बहुत तेजी व ग़लत तरीके से किये गए अभ्यास का मूल अर्थ है कि आप किसी भी अभ्यास को बिना सोचे समझे , उसके बारे में किसी सत्य सिद्धांत को बिना समझे सिर्फ़ उसकी बतायी गई विशेषताओं को सुन करके अभ्यास किया गया है । 

जब किसी भी कार्य के परिणाम को ध्यान में रखते हुए अभ्यास को महत्व दिया जाता है तब कर्म व कार्य में कुशलता नहीं आती है । कुशलता व सिद्धि आने के बजाय उसके उसके द्वार देह पर ग़लत परिणाम दिखने लगते हैं ।  

प्रश्न के अनुसार ग़लत तरीके से किए गए प्राणायाम के नुकसान पर बात की जा रही है ।  जब आप बहुत हाइपर एक्टिव होकर अत्यधिक ध्वनि उत्पन्न करते हुए प्राणायाम करते हैं, तो इसका दुष्प्रभाव आपके गले, कान व ज्ञानेंद्रियों पर सबसे पहले पड़ता है और उसके बाद और संपूर्ण शरीर पर पड़ता है। जब आप अपनी ही श्वास को इतनी तीव्रता से लेते हैं कि ध्वनि प्रदूषण होने लगता है, तो आपके कान उसे सुनते हैं , अंदर भी और बाहर भी। इस प्रकार की सांस लेने की प्रक्रिया में गले को अत्यधिक खींचने से ज्ञानेंद्रियों में गर्मी उत्पन्न होती है, पेट और छाती में भी खिंचाव महसूस होने लगता है। यह पूर्ण और वैज्ञानिक रूप से सत्य है कि तेजी से किए गए प्राणायाम में ध्वनि और गले में घर्षण की वृद्धि हो जाती है जिससे ज्ञानेंद्रियों में अत्यंत गर्मी पैदा होने की संभावनाएं बढ़ जाती है । यही वृद्धि वात और पित्त की प्रकृति के स्वभाव वालों के लिए ख़तरनाक हो जाती है । 

यदि कोई व्यक्ति बहुत जल्दी-जल्दी सांस लेने का अभ्यास करता है, तो इसका प्रभाव केवल गले तक सीमित नहीं रहता, बल्कि पेट और छाती भी प्रभावित होंगे। पहला तो इस प्रकार के प्राणायाम में अंतर्मन में प्रयोजन व लक्ष्य की ग़लत तरीके से बढ़ाया जाता है । मन के अंदर प्राणायाम के अभ्यास का प्रयोजन सिर्फ़ लाभ ही होता है । कर्म के समय में कर्म से होने वाली अनुभूतियों पर ध्यान दिया जाता है जिससे गहनता का अनुभव हो न कि उस समय सिर्फ़ परिणाम व लाभ पर ध्यान को केंद्रित करना । 

यहाँ तक कि अत्यधिक गति और बलपूर्वक किए जाने वाले प्राणायाम से ज्ञेन्द्रियों में ही नहीं बल्कि पेट व आमाशय में भी आवश्यकता से अधिक गर्मी उत्पन्न हो जाती है जो भविष्य में अधिक समय तक बनी रहने से देह में रोगों की वृद्धि में सहायक होती है । 

यह भी सत्य है कि उस गर्मी को समाप्त करने के लिए भले ही शीतली और शीतकारी प्राणायाम का अभ्यास किया जाये किंतु उससे उसके अभ्यास से अवसाद व डिप्रेशन के बढ़ने की संभावनाएं भी बढ़ने लगती हैं । 

ध्यान दें तेजी से किए गए प्राणायाम से पेट में भी अत्यधिक खिंचाव होता है, तो एसिड का निर्माण बढ़ जाता है और यह एसिड रिफ्लक्स के रूप में प्रतिक्रिया करता है। जब एसिड रिफ्लक्स की अधिकता होती है, तो इसका सीधा प्रभाव गले और स्वाद ग्रंथियों पर पड़ता है। परिणामस्वरूप, गले में खराश स्थायी हो सकती है और स्वाद धीरे-धीरे मंद पड़ने लगता है। यही कारण है कि एसिड रिफ्लक्स से प्रभावित लोग, विशेष रूप से वे जिन्हें लेटते समय अधिक समस्या होती है, भोजन के वास्तविक स्वाद का अनुभव सही ढंग से नहीं कर पाते।

इसलिए, प्राणायाम का अभ्यास करते समय अत्यधिक तीव्रता और बल से बचना चाहिए। जैसे-जैसे व्यक्ति सूक्ष्म अभ्यासों की ओर बढ़ता है, उसकी श्वास की गति नियंत्रित होती जाती है और वह अपने अनुभव क्षेत्र को विस्तारित करता है। इससे प्रतिक्रियाओं में भी कमी आती है। किंतु यदि कोई सूक्ष्म अभ्यासों की ओर बढ़ रहा है और अत्यधिक तेजी से अभ्यास कर रहा है, तो वह अपने शरीर को झकझोर देगा, शरीर में गर्मी और प्रतिक्रियाओं को बढ़ाएगा, जो अंततः उसे ही हानि पहुंचाएगा और रोगों का कारण बन सकता है।

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