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मानसिक रोग: अनुभव के स्पैन का कम होना

मानसिक रोग: अनुभव के स्पैन का कम होना

ज्यादातर मानसिक रोग उन लोगों को होते हैं जिनकी एकाग्रता की गहराई बहुत कम होती है। मतलब, जब वे किसी भी विषय या समस्या पर विचार करते हैं, तो उनकी सोच में गहराई नहीं होती। उनकी एकाग्रता या अनुभूति का स्पैन बहुत छोटा होता है। अर्थात् वह अनुभव मस्तिष्क में आवश्यकता से कम होता है जब कि मस्तिष्क को ज़्यादा अनुभव की आवश्यकता है ।  जब मन और इन्द्रियाँ किसी विषय पर गहराई से विचार करते हैं, तो हम उसके मर्म तक पहुँचते हैं, लेकिन समस्या वहीं से शुरू होती है।

पहली बात तो यह है कि 90% या कहें 99% लोग किसी भी विषय की गहराई में जाते ही नहीं। और अगर कुछ लोग जाते भी हैं, तो वे अनुभव नहीं कर पाते। यानी उनका अनुभव करने का स्पैन सीमित रह जाता है। बहुत कम लोग व लगभग 1%, ही ऐसे होते हैं जो वास्तव में गहराई में जाकर एकाग्रता या अनुभूति का पूरा स्पैन जी पाते हैं — जिनकी चेतना उस स्तर तक पहुँचती है जहाँ किसी विषय को केवल समझा नहीं, बल्कि अनुभव भी किया जाता है। 

जिनके अनुभव के स्पैन अधिक होते हैं उनमें मानसिक रोग बहुत कम देखने को मिलते हैं या बिल्कुल नहीं मिलते हैं। मेरे अनुसार उनमें शारीरिक रोग भी नहीं होना चाहिए । उनमें ही ज्ञान पैदा होता है। अब वह कैसे? मैं तर्कपूर्ण उदाहरण के के रूप में समझाने की कोशिश करूँगा ।  जैसे कोई भी स्वादिष्ट वस्तु आप अपनी जीभ पर रखते, मान लो रसगुल्ले को अपने जीभ पर रख दो। उसको आप निगलने की कोशिश करो। जल्दी-जल्दी खा जाओ। इसका अर्थ है कि उस रसगुल्ले का जीभ पर रखने का समय व टाइमिंग जो आपने रखा हुआ है, उसको अनुभव करने का, उसके स्वाद को, उसके टेस्ट को अनुभव करने का, उसकी लंबाई कम है क्योंकि आपने बहुत थोड़ा अनुभव किया और उसको निगल गए। जब भोजन का जीभ पर बहुत कम समय तक रखने का समय रहेगा तो मन उस स्वाद को कम समय तक ही ले पाएगा । 

यदि स्वाद के लेने का समय अधिक समय तक नहीं रहता तो मस्तिष्क उन सभी हार्मोन्स को छोड़ेगा ही नहीं जो संतोष देता हैं । आपका मन संतुष्ट नहीं हो सकता। देह में हार्मोनल सेटिस्फेक्शन नहीं हो सकता। किंतु यदि आप उस रसगुल्ले को जिसे आपने जीभ पर रखा, उसको उसकी टाइमिंग ज्यादा रखी क्योंकि आपका फोकस स्वाद पर ज्यादा है, तो स्वाद को लेने के या स्वाद को अनुभव करने के हार्मोन आपके अंदर धीरे-धीरे उत्पन्न होने लगते हैं। इस अवस्था में 

अगर आप उसको धीरे-धीरे निगलें, उसमें समय लें, तो आपका मन भी संतुष्ट होता है, शरीर भी संतुष्ट होता है। ठीक वैसे ही जो व्यक्ति ध्यान करता है, वह हर अनुभव की गहराई में जाता है, क्योंकि वह समय देता है, जल्दी में नहीं होता। उसका स्वाद, उसका ज्ञान, उसकी अनुभूति गहरी होती है। यही कारण है कि वह कम बीमार होता है, मानसिक रूप से भी और शारीरिक रूप से भी।

लेने के या स्वाद को अनुभव करने का स्पैन जितना लंबा होगा उतना ही मस्तिष्क संतुष्ट होगा, उतना ही आप संतुष्ट होगे और उतना उतना ही हार्मोनल सीक्रेशन बेहतर तरीके से बॉडी में काम करेगा। इसी तरह जब आप किसी भी वस्तु पर बहुत अच्छी तरह से गंभीरता से अनुभव करना शुरू करते हो या आपकी एकाग्रता का स्पैन बढ़ता है तो धीरे-धीरे आप संतुष्ट होने लगते हो। 

अब इसमें समस्या कहां आती है? 99% लोग जब किसी भी वस्तु पर — क्योंकि यहां स्वाद है — तो हो सकता है टाइम ले लेते हो, लेकिन मैंने देखा नहीं पर 99% लोग जब किसी भी विषय पर, किसी भी वस्तु पर अपना ध्यान केंद्रित करते हैं तो केंद्रित करते समय वो फिजिकल हो जाते हैं। यहाँ पर फिजिकल का अर्थ  उनके शरीर में, उनके इंद्रियों में खिंचाव होना शुरू होता है, वह हाइपर होने लगते हैं।  

 एकाग्रता के स्पैन के साथ साथ वह हाइपर होने लगते हैं जैसे 99% लोग जब मेडिटेशन करते हैं तो सांस को देखते देखते सांसों को नियंत्रित करने लगते हैं और उनके ब्लड में फ्लो या ब्लड में हीट ज्यादा बढ़ने लगती है और सांस ऑटोमेटिकली धीरे-धीरे लंबी और गहरी होने लगती है। सांसों में लंबी और गहरी होने का प्रत्यक्ष अर्थ है कि आप उसमें छेड़खानी कर रहे हो, आप उसमें खिंचाव कर रहे हो, जल्दीबाजी कर रहे हो। उस एकाग्रता में जल्दीबाजी है , अनुभव की मात्रा कम है । 


वह एकाग्रता का स्पैन नहीं , वो अनुभव का स्पैन नहीं। तो मान लो आपने एक घंटा मेडिटेट किया, भी सांस को देखा, भी सांस को खिंचाई किया, तो आपका ब्लड प्रेशर, आपका हार्ट बीट – ये सब बढ़ जाएगा। और एक घंटे में आपको थकान होगी, आपको रिलैक्सेशन नहीं हो सकता। अब हार्मोनल फ्लक्चुएशन होगी। यह मेडिटेशन की स्टेट नहीं है।

तो इसीलिए मैं ऐसे लोगों को, जो कंपल्सिव डिसऑर्डर, मतलब जो ऐसे लोग जो बहुत खींचातानी करके, जिनकी एकाग्रता का स्पैन कम है और जो बार-बार फोकस करके ध्यान करने की कोशिश करते हैं – उनको ये प्रैक्टिस नहीं करनी चाहिए।

एकाग्रता के उस स्पैन में जिसमें देह के अंगों में खिंचाव आ जाता है , वह स्पैन रोग देता है । तो शरीर को खींच लेते हैं। ऐसे लोगों को मैं कहता हूं मेडिटेशन मत करो, पहले गति पर कंट्रोल करो, स्पीड को कंट्रोल करो। फिर उसके बाद मेडिटेशन पर जाओ। लेकिन लोग मानते बहुत कम हैं। बाय द वे, तो जब आप अपनी कंसंट्रेशन जहां पर आप लगा रहे हो, विचार कर रहे हो, तो विचार करते-करते विचारों में खिंचाव नहीं आना चाहिए। यदि विचार बहुत खींचोगे, लंबा करोगे तो मस्तिष्क में खिंचाव होगा, इंद्रियों में खिंचाव होगा, अल्टीमेटली होगा। क्या? कि कुछ वर्षों के बाद आपकी समस्याएं धीरे-धीरे बढ़ जाएंगी और आपको रोग फिजिकल ही नहीं बल्कि साइकोलॉजिकल, सेंसुअल और स्पिरिचुअल भी हो जाएगा।

स्पिरिचुअल डिजीज का मतलब आप समझ लो। मेरे अनुसार स्पिरिचुअल डिजीज का मतलब है कि कहीं पर आप फोकस कर रहे हो तो आप अपने...

कहीं पर आप फोकस कर रहे हो तो आप अपने शरीर को खींच रहे हो। शरीर को खींच रहे हो, आप अपने इंद्रियों को खींच रहे हो, तो एकाग्रता जब आप करते हो तो अनुभव करते हुए, यदि एकाग्रता करोगे तो बॉडी में किसी भी हिस्से में खिंचाव नहीं आएगा अननेसेसरीली। खिंचाव नहीं आएगा और आप उसका उपयोग अधिक से अधिक कर सकते हो।

जिस साधन का उपयोग कर रहे हो यदि उस साधन को ध्यान दो, जिस साधन का उपयोग कर रहे हो, यदि उस साधन को हार्म करोगे उपयोग करते समय, तो आपका फिजिकल डिजीज, मेंटल डिजीज, साइकोलॉजिकल डिजीज – सारी डिजीज हो जाएंगी। आप बचा नहीं सकते।

इसलिए कोई भी सब्जेक्ट के बारे में जब आप सोचते हो तो आपका थिंकिंग पैटर्न स्लो, रिदमिक और उसमें रेस्टिंग का मूवमेंट बहुत अच्छा होना चाहिए ताकि ब्रेन को सोचते समय रेस्ट भी मिले।


अच्छा होना चाहिए ताकि ब्रेन को सोचते सोचते थिंकिंग पैटर्न में जाते रिलैक्सेशन भी मिलता रहे, रेस्टिंग भी मिलता रहे। यही यदि कर लोगे तो आपकी मेंटल ग्रोथ जबरदस्त हो जाएगी और कंसंट्रेशन का स्पैन बहुत गहरा हो जाएगा। ज्यादातर लोग जब कंसंट्रेशन करते हैं तो वह इसी प्रकार का खिंचाव करके अपनी डायफ्राम की सत्यानाश कर देते हैं। और डायफ्राम का सत्यानाश करने पर उनको वो डकार आती है जिसमें स्मेल नहीं होती, स्मेललेस बर्पिंग होती है। एक्सट्रीम बर्पिंग और ऑल द टाइम उनके अपर स्टमक एरिया में, चेस्ट एरिया में, मिडिल एब्डोमेन में खिंचाव बना रहता है। और उन्हें हमेशा उस खिंचाव से डर बना रहता है। तो धीरे-धीरे वो फियर के करीब जाने लगते हैं। एंजायटी, फियर, हार्ट का, हार्ट अटैक के, हार्ट अटैक का फियर—ये सारे फियर उनको धीरे-धीरे आने लगते हैं। तो इससे बचो। मसल को ध्यान दो, कंसंट्रेशन ऐसी...वि को ध्यान दो, कंसंट्रेशन ऐसी होनी चाहिए जिसमें मसल पर स्ट्रेस ना आए। उसके लिए मेरे बहुत सारे प्रोग्राम हैं। देखो, अपने को डायग्नोस पहले करो, अपनी एनालिसिस पहले करो कि प्रॉब्लम कहां आती है। प्रॉब्लम खाने की नहीं है ज़्यादा। एक बात समझ लो—जो लोग कहते हैं कि हम बहुत ज़्यादा खा लेते हैं, बहुत हम संतुष्ट नहीं होते, बार-बार खाने का मन करता है—यदि आपकी कंसंट्रेशन का स्पैन ही कम है, यदि आप कोई भी खाना जो चबा रहे हो, चबाते समय तो स्वाद लेते नहीं, आप चबाने के बाद जो थोड़ा-थोड़ा चबाते हो, फिर रेस्टिंग करते हो, फिर उसके बाद टेस्ट लेते हो, तो जब आप टेस्ट लेते हो, यदि उसका स्पैन नहीं बढ़ा, तो आप यहां से संतुष्ट नहीं होगे। कुछ घंटों के बाद आपको फिर से खाने को मन करेगा।


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