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नाभि और आध्यात्मिक ऊर्जा

नाभि: आध्यात्मिक ऊर्जा, शरीर विज्ञान और ध्यान का केंद्र

नाभि को योग, आयुर्वेद और आधुनिक शरीर विज्ञान में अत्यधिक महत्त्व दिया गया है। यह केवल शरीर का एक शारीरिक केंद्र नहीं है, बल्कि इसमें ऊर्जा, चेतना और स्वास्थ्य की गूढ़ संरचना समाहित है। नाभि को आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र माना जाता है, लेकिन जब यह असंतुलित हो जाती है, तो शरीर और मन दोनों पर व्यापक प्रभाव डालती है।

क्या नाभि ऊर्जा का केंद्र है?

आधुनिक चिकित्सा विज्ञान बताता है कि नाभि क्षेत्र में स्वायत्त तंत्रिका तंत्र (Autonomic Nervous System) की जटिल संरचना होती है, जो पाचन, रक्त संचार और आंतरिक अंगों को नियंत्रित करता है। यद्यपि नाभि जैसा कोई ऐसा तंत्र नहीं है जो सब कुछ नियंत्रित करता है । किंतु यहाँ यह भी बताना आवश्यक है कि योग विज्ञान भी नहीं को अंग नहीं मानता है ।  यह क्षेत्र न केवल जैविक क्रियाओं को प्रभावित करता है, बल्कि मानसिक और ऊर्जात्मक संतुलन से भी जुड़ा होता है।

योग में नाभि को “मणिपूर चक्र” कहा जाता है, जो शरीर में प्राण ऊर्जा का प्रमुख केंद्र है। जब यह संतुलित होता है, तो व्यक्ति ऊर्जावान, आत्मविश्वासी और मानसिक रूप से स्थिर महसूस करता है। लेकिन यदि इसमें असंतुलन आ जाए, तो पाचन विकार, गैस, ब्लोटिंग, मानसिक तनाव और चित्त की अस्थिरता जैसी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।

नाभि विस्थापन: एक वैज्ञानिक और योगिक परिप्रेक्ष्य

नाभि विस्थापन का तात्पर्य यह है कि नाभि अपने प्राकृतिक स्थान से थोड़ा खिसक जाती है, जिससे शरीर में असंतुलन उत्पन्न होने लगता है। योगिक दृष्टि से यह स्थिति तब आती है जब पेट की मांसपेशियाँ कमजोर हो जाती हैं या आंतरिक अंगों पर अत्यधिक दबाव पड़ता है।

आयुर्वेद और योगिक चिकित्सा के अनुसार, नाभि विस्थापन के कुछ प्रमुख लक्षण होते हैं:

• पेट में भारीपन और ब्लोटिंग

• अत्यधिक डकारें आना

• कब्ज और अपच की समस्या

• शरीर में असंतुलन और ऊर्जा की कमी

विज्ञान के दृष्टिकोण से, यह स्थिति पाचन तंत्र और नाड़ी तंत्र में अस्थिरता के कारण उत्पन्न होती है। जब पेट में अत्यधिक वायु जमा हो जाती है, तो यह पूरे नाड़ी तंत्र को प्रभावित करती है, जिससे नाभि क्षेत्र अस्थिर हो सकता है।

क्या ध्यान से नाभि विस्थापन ठीक हो सकता है?

यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है कि क्या ध्यान के माध्यम से नाभि विस्थापन को ठीक किया जा सकता है?

यदि नाभि का विस्थापन हल्का हो, तो ध्यान शरीर के प्राकृतिक संतुलन को पुनः स्थापित करने में सहायता कर सकता है। ध्यान करने से शरीर की स्व-चिकित्सा प्रणाली (Self-Healing System) सक्रिय होती है, जिससे आंतरिक अंगों की स्थिति धीरे-धीरे ठीक होने लगती है।

लेकिन जब नाभि विस्थापन अधिक हो जाता है, तो केवल ध्यान के माध्यम से इसे ठीक करना संभव नहीं होता। क्योंकि इस स्थिति में पेट की मांसपेशियाँ अत्यधिक तनाव में आ जाती हैं, और व्यक्ति ध्यान में सहजता से बैठ भी नहीं सकता।

इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है – यदि किसी फुटबॉल में बहुत अधिक हवा भर दी जाए, तो वह किसी भी हल्के धक्के से हिलने लगेगी। उसी प्रकार, जब पेट में अत्यधिक वायु होती है, तो ध्यान के लिए शरीर स्थिर नहीं रह पाता। इसीलिए, यदि नाभि विस्थापन अत्यधिक हो, तो पहले उसे योग और प्राणायाम से संतुलित करना आवश्यक है।

नाभि, पेट और मानसिक तनाव का गहरा संबंध

नाभि केवल पाचन तंत्र से जुड़ी नहीं है, बल्कि यह मानसिक अवस्था को भी प्रभावित करती है। जब व्यक्ति तनाव में होता है, तो उसके पेट की मांसपेशियाँ भी सिकुड़ने लगती हैं। यह एक वैज्ञानिक तथ्य है कि जब कोई अत्यधिक तनाव में होता है, तो उसकी सिम्पेथेटिक नर्वस सिस्टम (Sympathetic Nervous System) सक्रिय हो जाती है, जिससे शरीर में “फाइट-ऑर-फ्लाइट” प्रतिक्रिया उत्पन्न होती है। इस स्थिति में पेट की मांसपेशियाँ तनावग्रस्त हो जाती हैं, और नाभि असंतुलित हो सकती है।

यदि कोई व्यक्ति बहुत अधिक बोलता है, तो वह भी पेट पर अतिरिक्त दबाव डालता है। जो लोग दिनभर बोलते हैं, वे ध्यान दें कि उनके पेट के बीच का हिस्सा अधिक संकुचित हो जाता है। यह भी एक प्रकार की आदत बन जाती है, जिसे योग में “वृत्ति” कहा जाता है – अर्थात, शरीर और मन की गहरी जड़ें जमाने वाली प्रवृत्तियाँ।

ध्यान इस वृत्ति को समाप्त कर सकता है, लेकिन जब तक शरीर और पेट की स्थिति संतुलित न हो, तब तक ध्यान प्रभावी नहीं हो सकता।

ध्यान से पहले हठ योग क्यों आवश्यक है?

योगिक प्रणाली में ध्यान से पहले हठ योग और प्राणायाम को अत्यंत आवश्यक माना गया है। यदि शरीर असंतुलित हो, तो ध्यान में बैठने से कोई विशेष लाभ नहीं होगा। इसीलिए योग के आठ अंगों में ध्यान (ध्यान, धारणा, समाधि) से पहले यम, नियम, आसन और प्राणायाम का अभ्यास करने की बात कही गई है।

समाधान क्या है?

1. प्राणायाम और आसन का अभ्यास करें:

• नाड़ी शोधन प्राणायाम शरीर और मन को संतुलित करता है।

• कपालभाति और अग्निसार क्रिया नाभि क्षेत्र को मजबूत बनाती है।

• नाभि केंद्रित आसन जैसे नौकासन, पश्चिमोत्तानासन और पवनमुक्तासन नाभि को संतुलित करते हैं।

• पेट की अत्यधिक टाइटनेस को कम करें, जिससे ध्यान में बैठना सहज हो।

• जब तक पेट में ब्लोटिंग या वायु असंतुलन हो, तब तक ध्यान करना कठिन होगा।

• जब शरीर थोड़ा संतुलित हो जाए, तो ध्यान का अभ्यास शुरू करें।

• ध्यान से मानसिक तनाव कम होगा, जिससे नाभि क्षेत्र पर पड़ने वाला अतिरिक्त दबाव भी कम होगा।

नाभि केवल शरीर का एक हिस्सा नहीं है, बल्कि यह ऊर्जा संतुलन, मानसिक शांति और स्वास्थ्य का केंद्र है। ध्यान और योग दोनों का संबंध सीधे नाभि से है, लेकिन जब शरीर असंतुलित हो, तो केवल ध्यान से सभी समस्याओं का समाधान संभव नहीं होता।

ध्यान और योग का सही क्रम अपनाना आवश्यक है – पहले शरीर को हठ योग और प्राणायाम के माध्यम से संतुलित किया जाए, और फिर ध्यान द्वारा आंतरिक चेतना को गहराई तक ले जाया जाए। यही योग का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक मार्ग है।

इसलिए, यदि आप ध्यान में गहराई तक जाना चाहते हैं, तो पहले अपने शरीर को संतुलित कीजिए, नाभि को स्थिर कीजिए और फिर ध्यान का अभ्यास कीजिए। यही पूर्ण योग का मार्ग है।

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