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नाभि के हटने से पाचन तंत्र पर बुरा प्रभाव

क्या नाभि का कमजोर होना पाचन तंत्र पर असर डालता है?

नाभि और पाचन तंत्र का संबंध

नाभि केवल शरीर का मध्य बिंदु नहीं है, बल्कि यह एक ऊर्जात्मक केंद्र भी है, जिसे योग और आयुर्वेद में महत्वपूर्ण माना जाता है। यदि नाभि कमजोर हो जाती है या अपने स्थान से थोड़ा इधर-उधर हो जाती है, तो इसका सीधा प्रभाव पाचन तंत्र पर पड़ता है।

नाभि का कमजोर होना दरअसल शरीर में अग्नि तत्व की कमजोरी को दर्शाता है। अग्नि का स्तर यदि एक निश्चित सीमा से कम हो जाए, तो भोजन में उपस्थित पोषक तत्वों का सही ढंग से अवशोषण नहीं हो पाता। उदाहरण के लिए, यदि शरीर में अग्नि कमजोर है, तो चाहे आप जितना भी विटामिन डी या अन्य पोषक तत्व लें, वे पूरी तरह से अवशोषित नहीं हो पाएंगे।

लिवर और नाभि का संबंध

नाभि क्षेत्र में ऊर्जा के कमजोर होने से लिवर का कार्य प्रभावित हो सकता है। मैंने कई ऐसे लोगों को देखा है जो अंडरवेट होते हैं, लेकिन फिर भी उनका लिवर फैटी हो जाता है। इसका मुख्य कारण यह है कि जब नाभि क्षेत्र में ऊर्जा का प्रवाह सही नहीं होता, तो लिवर की कार्यक्षमता कम हो जाती है, जिससे फैटी लिवर जैसी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।

यदि नाभि को संतुलित कर लिया जाए, तो यह ऊर्जा केंद्र सक्रिय हो जाता है और शरीर में गुरुत्वाकर्षण का सही संतुलन बनता है। इससे न केवल पाचन क्रिया सुधरती है, बल्कि लिवर की कार्यक्षमता भी बढ़ जाती है।

नाभि और आंतों की क्रियाशीलता

नाभि का असंतुलन बावल मूवमेंट (आंतों की क्रियाशीलता) को प्रभावित करता है। जब नाभि अपने स्थान से थोड़ी भी खिसक जाती है, तो इससे कब्ज, अपच, गैस, एसिडिटी और अन्य पाचन संबंधी समस्याएँ हो सकती हैं।

नाभि को संतुलित रखने से सूर्य ऊर्जा का प्रवाह शरीर में बेहतर होता है। यह ऊर्जा आंतों की कार्यक्षमता को बढ़ाती है और संपूर्ण पाचन प्रक्रिया को सुचारू रूप से चलाने में मदद करती है।

सेरोटोनिन और नाभि का संबंध

आधुनिक विज्ञान कहता है कि सेरोटोनिन नामक न्यूरोट्रांसमीटर का 80% से अधिक भाग आंतों में बनता है। सेरोटोनिन का सीधा संबंध मानसिक स्थिरता और पाचन क्रिया से है। यदि नाभि क्षेत्र में ऊर्जा कमजोर हो, तो इसका सीधा असर सेरोटोनिन के उत्पादन पर पड़ता है।

यदि सेरोटोनिन का स्तर गिर जाता है, तो यह निम्नलिखित समस्याएँ उत्पन्न कर सकता है—

1. इरिटेबल बाउल सिंड्रोम (IBS) – यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें आंतों की गतिविधि असामान्य हो जाती है, जिससे कब्ज, डायरिया, या पेट में ऐंठन हो सकती है।

2. मूड स्विंग्स – मानसिक अस्थिरता बढ़ जाती है, जिससे व्यक्ति जल्दी चिड़चिड़ा हो जाता है।

3. नींद की समस्या – सेरोटोनिन मेलाटोनिन के उत्पादन को प्रभावित करता है, जो नींद को नियंत्रित करता है। यदि सेरोटोनिन का स्तर कम हो जाए, तो अनिद्रा या हल्की नींद की समस्या हो सकती है।

नाभि संतुलन और मानसिक शांति

नाभि के संतुलन का प्रभाव न केवल शारीरिक, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य पर भी पड़ता है। मैंने अपने कई स्टूडेंट्स को इस प्रक्रिया से गुजरते देखा है। जब उनकी नाभि संतुलित हो जाती है, तो न केवल उनकी पाचन क्रिया बेहतर होती है, बल्कि वे मानसिक रूप से अधिक स्थिर और शांत महसूस करते हैं।

नाभि को संतुलित रखने के उपाय

1. योग और प्राणायाम – उड्डयन बंध, मूल बंध और अनुलोम-विलोम प्राणायाम तथा उज्जैई प्राणायाम नाभि को संतुलित करने में सहायक होते हैं।

2. तेल से मालिश – नाभि पर सरसों या नारियल तेल लगाने से ऊर्जा संतुलन में सुधार होता है।

3. हल्का और सुपाच्य भोजन – ऐसा भोजन लें जो पाचन तंत्र को ज्यादा भार न दे, जैसे दलिया, खिचड़ी और फलों का सेवन।

4. गर्म पानी का सेवन – सुबह उठकर गुनगुना पानी पीने से आंतों की क्रियाशीलता बेहतर होती है।

5. विशेष आसन – पवनमुक्तासन, सुप्त वज्रासन, ताड़ासन और पश्चिमोत्तानासन नाभि को सही स्थान पर रखने में सहायक होते हैं।

नाभि केवल एक शारीरिक संरचना नहीं है, बल्कि यह शरीर का ऊर्जात्मक केंद्र भी है, जो पाचन, मानसिक स्वास्थ्य और संपूर्ण ऊर्जा संतुलन को नियंत्रित करता है। यदि नाभि कमजोर या असंतुलित हो जाती है, तो यह पाचन तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव डालती है, जिससे कब्ज, गैस, अपच और लिवर संबंधी समस्याएँ हो सकती हैं।

योग, प्राणायाम और सही खानपान के माध्यम से नाभि को संतुलित रखा जा सकता है, जिससे न केवल पाचन क्रिया सुधरती है, बल्कि मानसिक स्थिरता और संपूर्ण स्वास्थ्य भी बेहतर होता है। इसलिए, नाभि का ध्यान रखना केवल एक शारीरिक क्रिया नहीं, बल्कि एक संपूर्ण स्वास्थ्य संतुलन का हिस्सा है।

अंत में एक प्रमुख बात को कहना बहुत आवश्यक होगा , उपर्युक्त सभी क्रियाओं को किसी भी अनुभवी गुरु के निर्देशन में करना बेहतर होगा । 


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