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नाभि और धरण हेतु व्यक्तिगत परामर्श

Duration: 1 hour(s)
Fee: 5100/-

योगी अनूप द्वारा विशेष योग-प्राणायाम एवं ध्यान आधारित परामर्श सेवा

क्या आपको बार-बार पेट ख़राब रहने, गैस, कब्ज़, भारीपन या अवसाद जैसी समस्याएँ होती हैं?

क्या चिकित्सकीय जाँचों में सब कुछ सामान्य है फिर भी आपकी तकलीफ़ बनी रहती है?

यदि हाँ, तो यह नाभि व धरण के डिगने यानी नेवल डिस्प्लेसमेंट से जुड़ी समस्या हो सकती है – एक ऐसा क्षेत्र जिसे आधुनिक चिकित्सा अक्सर अनदेखा करती है, परंतु योग और प्राचीन अनुभव इसे बहुत गंभीरता से देखते हैं।

योगी अनूप का अनुभव और परामर्श पद्धति

योगाचार्य योगी अनूप पिछले 35 वर्षों से नाभि और धरण की समस्याओं पर शोध व कार्य कर रहे हैं। उनके अनुसार, यह केवल शारीरिक समस्या नहीं है, बल्कि यह मानसिक, तंत्रिकीय और प्राणिक असंतुलन से जुड़ी एक गहन स्थिति है। 

योगी अनूप का परामर्श ध्यान, प्राणायाम और गहरे आत्म-अनुभव पर आधारित होता है, जहाँ रोग का समाधान दवाओं से नहीं, बल्कि प्राण के प्रवाह को संतुलित करके किया जाता है।

नाभि व धरण डिगने के तीन मुख्य कारण

  1. मानसिक तनाव व अवसाद (Depression): दीर्घकालिक चिंता और मानसिक दबाव से शरीर का केंद्रीय संतुलन (Centre of Gravity) बिगड़ता है, जिससे धरण व शरीर का मध्य हिस्सा “नाभि” असंतुलित हो जाती है।

  2. वायु-विकार (Vata Disorders): विशेषतः उदान, समान और अपान वायु के दीर्घकालिक असंतुलन से यह स्थिति और जटिल हो जाती है। पेट के मध्य भाग में असंतुलन प्रारंभ होने लगता है । यहाँ तक कि लिवर और छोटी आँतों पर दुष्प्रभाव स्पष्ट रूप से देखने को मिलने लगता है ।

  3. अचानक झटका या शारीरिक आघात: भारी वस्तु उठाने, पैर फिसलने या गलत मुद्रा में बैठने-चलने से देह का केंद्रीय भाग व नसों और स्नायुओं में खिंचाव आता है, जिससे नाभि का स्थान प्रभावित होता है।

नाभि व धरण की गहराई को समझना क्यों आवश्यक है?

नाभि कोई स्थूल अंग नहीं है जो “चल जाए” या “उखड़ जाए”, बल्कि यह शरीर का प्राकृतिक गुरुत्व केंद्र (Centre of Gravity) है — वहीं बिंदु जिससे गर्भ में बच्चे का संपूर्ण शरीर और मस्तिष्क विकसित होता है।

जन्म के बाद भी, यदि इस केंद्र के आसपास की नसें, मांसपेशियाँ या नाड़ियाँ असंतुलित होती हैं, तो शरीर में ऊर्जा का प्रवाह बाधित हो जाता है — यही नेवल डिस्प्लेसमेंट की जड़ है।

नेवल डिस्प्लेसमेंट के लक्षण क्या होते हैं?

  • पेट में बार-बार भारीपन और गैस

  • एसिडिटी, कब्ज़ या लूज मोशन

  • सिर में भारीपन और थकान का हमेशा बने रहना 

  • पेट व पेट के ऊपरी हिस्से एवं डायफ्राम क्षेत्र में खिंचाव का बने रहना 

  • पानी या हल्का भोजन भी न पचना

  • अवसाद, बेचैनी और बेचैनी की नींद , 

  • IBS, रिफ्लक्स और साइलेंट एसिडिटी, आंखों में जलन का रहना 

 ज्यादातर यह समस्या इतनी सूक्ष्म होती है कि आधुनिक जाँचों में इसका कोई स्पष्ट कारण नहीं मिलता, किंतु पीड़ा बनी रहती है।

नाभि के प्रभावित क्षेत्र और उनका प्रभाव

  1. नाभि के ऊपर:  डायाफ्राम का तनाव, सांस का अवरोध, भावनात्मक जड़ता

  2. नाभि के नीचे: बड़ी-छोटी आंत, मूत्राशय व मलाशय में गड़बड़ी

  3. नाभि का दायाँ-बायाँ भाग: लीवर, स्प्लीन, पैंक्रियास व प्रजनन तंत्र प्रभावित

योग, प्राणायाम और ध्यान के माध्यम से समाधान

योगी अनूप द्वारा निर्देशित विशेष नाभि चिकित्सा प्रोटोकॉल में शामिल होते हैं:

  • विशिष्ट प्राणायाम जिनसे उदर क्षेत्र में ऊर्जा संतुलन आता है

  • नाड़ी ध्यान (Nadi-Dhyana) जिससे नसों में सूक्ष्म प्रवाह जागृत होता है

  • भावनात्मक विषाक्तता (Emotional Toxicity) का शुद्धिकरण

  • उदर और नाभि को केंद्रित करने वाले योगासन और विशेष मुद्रा अभ्यास

  • भोजन और जीवनशैली के अनुकूलन हेतु मार्गदर्शन

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