भाव और अभाव का वास्तविक अर्थ
भाव का मूल अर्थ “कुछ होना” है या विचारों का ऐसा समूह, जो मन और इंद्रियों में क्रियात्मकता उत्पन्न करता है। यही भावनाएँ मस्तिष्क में गति पैदा करती हैं, जिसके कारण हमारे जीवन में निरंतर कर्म बना रहता है। भाव कर्म की सहायता से पूरे शरीर में प्रवाहित होता है, जिससे मन और शरीर में एक अभिन्न सामंजस्य बना रहता है। यही भावनाएँ मस्तिष्क को तब तक आराम प्रदान करती हैं जब तक उसमें एक लय होती है। किंतु जैसे ही यह लय टूटती है, मन और शरीर का सामंजस्य गड़बड़ा जाता है, जिससे देह और मन में रोग उत्पन्न होने लगते हैं।
सामान्य मनुष्य इन्हीं भावनाओं को जीवन का मूल आधार मानता है। लेकिन इसके परे, जीवन के परम निर्मल “अभाव” पक्ष को वह नहीं समझ पाता। संभवतः इसी कारण हम अभाव से शांति की आशा नहीं रखते और भावनाओं में ही सब कुछ पाने की अपेक्षा करते हैं। अभाव से हम या तो अनभिज्ञ रहते हैं या उसमें जाने से डरते हैं, क्योंकि वहाँ “कुछ न होने” का आभास होता है।
अभाव और भाव का द्वंद्व
अभाव, भाव रूपी सिक्के का दूसरा पहलू है, जिसका मुख्य कार्य विषय शून्यता है। जब अंतर्मन में किसी भी प्रकार का विषय नहीं रहता, तो वह अभाव की स्थिति कहलाती है। सामान्य मनुष्य में विचार शून्यता का भय अत्यधिक होता है। उन्हें लगता है कि कहीं जीवन से सब कुछ समाप्त न हो जाए। इसी डर से वे इसे निरर्थक मानते हैं और इससे बचने की कोशिश करते हैं।
लेकिन यह नहीं जानते कि बिना अभाव के, भावात्मक जीवन को सफलतापूर्वक जीना संभव नहीं है।
नींद और अभाव का संबंध
नींद क्या है? नींद में हम अभाव की स्थिति में ही तो होते हैं। यह अभाव की अवस्था ही है, जो शरीर और मन की टूट-फूट को ठीक करती है और रोगों को मन और शरीर में आने से रोकती है।
सामान्य जीवन में जब हम भावनाओं के जाल में अधिक उलझ जाते हैं, तो उससे निकलने का उपाय हमारे पास नहीं होता। यही कारण है कि हमें नींद, आत्मसंतोष, और तनाव से मुक्ति पाने के लिए दवाइयों का सहारा लेना पड़ता है। ये दवाइयाँ मस्तिष्क को शांत करने के बजाय उसे सुन्न (numb) कर देती हैं। और कुछ वर्षों बाद यह सुन्नता रोगों के रूप में सामने आती है।
भाव जब तक है, तब तक सुख-दुख बना रहेगा। लेकिन जैसे ही अभाव का जन्म होगा, जीवन में निर्द्वंद्वता का आगमन होगा। यही ध्यान है।
गहरी नींद का अनुभव करें—क्या इससे बड़ी निर्द्वंद्वता किसी को प्राप्त हो सकती है? यदि गहरी नींद आ जाए, तो समझिए सारी समस्याओं का अंत हो गया। लेकिन यही जीवन का सबसे कठिन कार्य है, जिसे सहजता से प्राप्त नहीं किया जा सकता।
अभाव प्राप्त करने के उपाय
अभाव की स्थिति प्राप्त करने के लिए कुछ सरल उपाय हैं। इन उपायों से भावनाओं का दमन स्वतः ही समाप्त हो जाता है। ध्यान का अर्थ है अभाव में स्थित हो जाना। यह तभी संभव है, जब भावों पर निरीक्षण की कला विकसित हो जाए।
अभाव प्राप्ति के अभ्यास के चरण:
1. शांतिपूर्ण स्थान का चयन करें: ऐसी जगह चुनें, जहाँ शांति हो। वहाँ सीधा बैठें या लेट जाएँ।
2. शरीर और श्वास का निरीक्षण करें: सबसे पहले अपने शरीर के हर अंग का निरीक्षण करें। इसके बाद अपनी श्वास को महसूस करें।
3. भावों का निरीक्षण करें: अंत में अपने भावों का अवलोकन करें। उनसे जुड़ें नहीं, केवल उन्हें देखें।
4. समय निर्धारित करें: इस प्रक्रिया को प्रतिदिन कम से कम 10 मिनट तक करें। ध्यान रहे, इसे करते हुए सोने न लगें।
कुछ दिनों के अभ्यास के बाद आप अपने भावों को समझने और उन्हें नियंत्रित करने में सक्षम हो जाएंगे।
ध्यान के लिए टिप्स:
1. भावों का निरीक्षण ही अभाव में स्थित होने का सर्वोत्तम उपाय है। भावों से जुड़कर उन्हें समाप्त नहीं किया जा सकता, इसलिए उनसे अलग होकर उनका अवलोकन करें।
2. भावनाओं का दमन न करें। समाधान केवल उनका अवलोकन है।
भाव और अभाव, जीवन के दो पूरक पहलू हैं। जब हम अभाव को अपनाते हैं, तो जीवन में संतुलन और शांति का अनुभव होता है। ध्यान और गहरी नींद, दोनों हमें अभाव की स्थिति में पहुँचने में मदद करते हैं। अभाव को समझकर ही हम अपने जीवन में सच्चे सुख और शांति का अनुभव कर सकते हैं।
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